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स्लीमेन के संस्मरण
विलियम हेनरी स्लीमेन एक अंगे्रज अफसर थे, परंतु भारत के प्रति आदर उनमें गले तक भरा हुआ था। उन्होंने जबलपुर से षिमला तक कि यात्रा घोड़े नी की थी और रास्ते के गांवों-षहरों, राजाओं-नवाबों और भारत की सांस्कृतिक परंपराओं पर जी खोलकर लिखा है।
- रामेष्वर नीखरा
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गुलामों का गणतंत्र
राजेंद्र चंद्रकांत राय की कहानियों में हम पर्यावरण के सूक्ष्म पाठ को देख सकते हैं। मनुश्य समाज से इतर दुनिया के साथ उनकी कहानी संवाद करती है और वहां के रहस्यों को हम पर खोलती है।
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फिरंगी ठग
पीले रूमाल वाले ठगों का कभी हमारे देष पर गहरा आतंक रहा है। उनके सदियों से रहस्य में लिपटे जीवन के रेषों कों इस उपन्यास में खोला गया है। ये उन दिनों के सत्य का उद्घाटन करने वाली रचना है।
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सामान्य पर्यावरण ज्ञान
सहज और सरल तरीके से पर्यावरण की समग्रता का परिचय कराने वाली महत्वपूर्ण पुस्तक
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अच्छा तो तुम यहां हो
‘राजेंद्र चंद्रकांत राय यथार्थ से मुठभेड़ के साहसी और चेतस कथाकार हैं और समाज और व्यवरूथा के खोट तथा खुरंट को उजागर करने से नहीं चूकते। इस संग्रह की तीनों कहानियां अद्भुत् और कालजयी प्रतीत होती हैं। & सुधीर सक्सेना
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पर्यावरण नुक्कड़ नाटक
‘ये नाटक गजब की पर्यावरण चेतना से परिपूर्ण हैं। बच्चों के लिये लिखे गये ये नाटक बेहद सरल, रोचक और सार्थक हैं। &
- अरुण पाण्डेय
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बेगम बिन बादषाह
‘राजेंद्र चंद्रकांत राय के पास एक षैलीकार का आवेग और वैज्ञानिकता की पृश्ठभूमि है- इसी से उनके गद्य की बुनावट हुई है। इस संग्रह की कहानियों में मामूली, अदने, वंचित इंसानों का प्रोष और चयन है, लेकिन एक बड़े फ़र्क के साथ। & ज्ञानरंजन
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स्लीमेन की अवध डायरी
1857 के पहले अवध की राजनीतिक-सामाजिक दषा कैसी थी, स्लीमेन ने अपनी इस किताब में उसी का वास्तविक और रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन किया है।
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खलपात्र
स्वाधीनता संग्राम के दिनों में हिंदु-मुस्लिम रिष्तों और पाकिस्तान बनाने की तमन्ना रखने वालों की असलियत को उजागर करने वाला अनोखा उपन्यास है यह।
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सहस्रबाहु
स्हस्रबाहु एक पौराणिक चरित्र है। इसके माध्यम से मनुश्य जीवन की नैतिकता को रेखांकित किया गया है।
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ठगों की कूटभाशा रामासी
खुंखार ठगों ने षताब्दियों तक अपना क्रूरतम अपराध कर्म चलाये रखने के दौरान अपनी एक कूटभाशा भी विकसित कर ली थी। स्लीमेन उसी के रहस्यों को इस किताब में उजागर किया है।
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कामकंदला
राजतंत्र में से ही लोकतंत्र के अंकुरित होने की इस कथा का स्रोत है कल्चुरिकालीन व्यवस्था। लेखक चंद्रकांत ने उसी काल की भाशा और षिल्प में इसे रचा है।